"यथार्थ"
गहरा होता है सागर सा ,
विस्तृत क्षितिज सा,
और दृश्य आईने सा ।
हम उसमें जितना डूबते हैं,
फैलते हैं और जैसा,
जितना देखते हैं; उस वक्त
हमारे लिए बस
उतना ही यथार्थ/ सत्य होता है।
और बाकी सब होती हैं;
इस ब्रह्मांड की
कोरी "कल्पनाएं"..!
क्यूंकि
:
"स्वयं सत्य भी एक
बेहद सुंदर कल्पना है"
-Anjali Rai
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