अहमियत मैं क्या बताऊं किसी के इतंजार में
पुराने मकान का जैसे जर्जर दिवार हों गया !!
कतरा कतरा दिन कट रहा नामौजूदगी में
सदाबहार पेड़ से जैसे रेगिस्तान में झाड़ हों गया!
पहर से दुसरा पहर शुरु हुआ राह तकने में
शुरुआत ही थी, देखते ही ये उम्र भी पार हो गया!!
मौत तो चली आ रही गले लगाने, तेरे यादों में
तु महफूज़ रह मेरा तो मकबरा तैयार हो गया!
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