ये भगत की, ये केसरी और आज़ाद की धरती है,
मिट्टी की सोंधी सी खुशबू साहस सा एक भर्ती है,
ऐसे देश को जान भी दे दूँ तो भी है कम लगता वीर,
देश बहे और मैं ना बोलूँ ऐसा ना हो सकता वीर,
धीरज की जो बात करें मैं उनसे पूछो क्यों थमूँ,
दुश्मन आँख दिखा रहा, उसकी आँखें क्यों सहूँ,
क्या यही भूमि है, यही देश है यही अपना समाज है,
संस्कृति और सभ्यता पर पड़ रही सी गाज है,
क्या हमने अब मानवता के सभी चिह्न खो दिये हैं,
मिथ्या, ईर्ष्या, अर्धम, हिंसा सबके बीज बो दिए हैं,
मंज़र ऐसा हो गया है अब सब कुछ बर्बाद है,
क्या तुम्हें वो सुहानी कहानियाँ भी याद हैं,
इस तरह से रहना अब ना रहने के बराबर है,
फिर कोई अंग्रेज़ या लूटेगा कोई बाबर है,
क्यों रुके हैं हम, किसने हमको रोका है,
किसकी आवाज़ ने वीरता का दम ऐसे घोटा है,
क्यों नहीं अब उठ रहे खंजर तलवार हैं,
क्यों नहीं अब हो रहे काइयोँ पर वार हैं,
दुश्मन फिर से वार कर, ऐसा ना हो सकता वीर,
देश बहे और मैं ना बोलूँ ऐसा ना हो सकता वीर!
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