रात सिसकती रही, जान खिसकती रही।
बस्तियाँ जलती रही, आग दहकती रही।
रक्तधारा बहती रही, लाशें सुलगती रही।
धर्म लड़ते रहे, इंसानियत बिलखती रही।
ना कोई हिन्दू मरा, ना कोई मुसलमान मरा।
दंगों में हर दफ़ा सिर्फ इंसान मरा।
कोई पति मरा, कोई पिता मरा।
कोई बूढ़ा मरा कोई जवान मरा।
धर्म मरा, ईमान मरा, राम मरा, रहमान मरा।
ना कोई हिंदू मरा, ना कोई मुस्लमान मरा।
जानें जाती रही, सरकारे सोती रही।
औलादों को लड़ता देख भारत माँ रोती रही।
रात सिसकती रही, जान खिसकती रही।
बस्तियाँ जलती रही, आग दहकती रही।
- सुमित भारद्वाज।
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