समय तू नहीं सुनता मेरी
थोड़ा धीरे चलने के लिए ही तो कहा था
दो पल मुझे जी तो लेने दे
ज़रा बरसते बादल को देखने तो दे
इस खिलती धूप को महसूस तो करने दे
मां की बनाई रोटी को एक पल चैन से खा तो लेने दे
दोस्तों संग दो पल बचपन की बातें तो करने दे
सड़क के किनारे उन कुत्तों के छोटे बच्चों संग खेलने दे
मैं आज भी सर्दियों में पतंग उड़ाना चाहता हूं
रात के अंधेरे में तारों को गिनना चाहता हूं
बादलों में अपनी कल्पनाओं से चित्र बनाना चाहता हूं
पर तू है कि एक पल के लिए भी नहीं रुकता
निरंतर चलता रहता है, बढ़ता रहता है
तेज़ बहुत तेज़, हरदिन कल से भी तेज़
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