बह चली थी ठंडी पुरवाई कि दिन अब ढल चुका था,
सूरज कँही दुबक गया शायद जल-जल कर पूरा जल चुका था,
मैं भी गिरते-पड़ते शाम का हाँथ पकड़ अब संभल चुका था,
तुझे देखने के इंतज़ार में अब मैं खुद तेरी शक्ल में ढल चुका था!
लेकिन जब तू आई तो वो ठंडी हवाओँ का बहना कुछ तेज सा हुआ था,
वो सच में हवा थी या सिर्फ मुझे लगा था ऐसा जब तूने अपने हाथों से मुझे छुआ था,
वो तू थी या सिर्फ़ तेरी यादें थी, वो तेरा हवा में लहराता दुपट्टा था या सिर्फ धुआँ था!
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