चाँद की मीरा
देख रही हु आसमान में ए चाँद तुझे,
शर्मा ने जाना जिस तरह ताक रही हु मैं तुझे !
रास लीला रचा तू चांदनी के संग आसमान में,
देख उसे ना कोई गिलाह है मुझे,ना कोई दिक्कत तुझे!
उसी शिद्दत से दीदार करती हूं तेरा में,
इसमे ना ही कोई गलतफैमि ,ना मुझे, और ना ही तुझे !
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