जख्मी पंखों के सहारे
किस्मत से हर बार हारे
वो तड़प रही थी
किसे सहारे को पुकारे
कि खुदगर्ज जमाना
दिखाता रहा उसे
हसीन झूठे ख्वाब
कि वो उड़ेगी
और उस ख्वाब के सहारे
पूरा करेगी अपनी मंजिल को
पर सब निकले शिकारी
उसके ख्वाबों को कुचलते रहे
हिम्मत हार कर उसने
छोड़ दिया सबका साथ
भूल कर सारी दुनिया की बात
समेटे अपने पंख
और एक उम्मीद के साथ
निकल पड़ी है जीने
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