हर एक शख्स दिल मे दर्द ,छुपा के बैठा है ! अपनी तबस्सुम में, सिकन मिटाके बैठा है ! दूसरों के लिए अपने जहन ,ईष्र्या दबाके बैठा है ! दिखावे के शौक में ,ख़ुद का ईमान लुटाके बैठा है !!!
चमकतीं है अमावस की रात में, चाँदनी जैसे ! लगाकर गजरा बालो में , इतराता है जैसे ! तिमिर से जीवन मे, बहिश्त सा अफ़साना हो जैसे ! ख़ुशबू की तरह बिखर जाए,तेरी तबस्सुम में जैसे !!