यूं तो हम सब सरहद पर पौरुष, दिखलाना चाहते हैं
इस्लामाबाद की धरती पर भी, ध्वज लहराना चाहते हैं
यह ख्वाब बेशक पूरा होगा, यौवन में वह ताकत है
शेरों के जो दांत गिने, रक्त में वही हिमाकत है
पर भारतवंशियों की हालत, आज शर्म आती है हमें बताने में
हम नाक सिकुड़ने लगते हैं ,एक कागज का टुकड़ा उठाने में
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