क्यों हर बार उनकी चीख अनसुनी कर दी जाती है
क्यों हर बार हर बंदिशें उनपर ही लगाईं जाती हैं,
क्यों हर बार हर जुर्म उनपर ही होता है
क्यों हर चीज़ का बोझ लड़की का कंधा ही ढोता है,
क्यों उनपर हो रहा अत्याचार लोगों को गलत नहीं लगता है
क्यों आवाज उठाने के लिए ये समाज किसी बलात्कार का इंतज़ार करता है,
क्यों किसी के शरीर को जीते जी मारने दिया जाता है
क्यों वो अत्याचारी समाज में सिर उठाकर जीने दिया जाता है,
क्यों हर बार एक रूह को यूँ ही जलने दिया जाता है
क्यों हर बार उसकी पवित्रता पर सवाल उठाया जाता है,
क्यों एक अपराधी खुले आम घूमता है
और एक बेगुनाह कमरों में बंद कर दिया जाता है,
क्यों हर बार एक लड़की को ही हर मर्यादा सिखाई जाती है
'तुम्हे छिपकर रहना होगा' क्यों ये बात उन्हें हर बार सिखाई जाती है,
क्यों हर बार लड़की को चुप करवाते हुए हम भूल जाते हैं कि गलत आपका लड़का भी हो सकता है,
क्यों बाहर वालों से सतर्क रहना कहकर हम भूल जाते हैं कि शैतान घर में भी हो सकता है,
क्यों एक घर के भेदी पर कभी शक नहीं किया जाता
क्यों उस सहमी सी आवाज के पीछे का कारण नहीं पूछा जाता,
क्यों हर बार उस मासूम की इज्ज़त पर यूँ वार होता है
क्यों हर बार उसका विश्वास तार तार होता है,
अब तो घिन आती है खुद को इस समाज का हिस्सा कहते हुए
जहाँ एक लड़की की रूह के साथ उसका शरीर जलाना रोज के अखबारों का मुख्य समाचार होता है..!
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