रात दिन नफ़रतों की ये बातें,
शब-सहर दुश्मनी के ये चर्चे,
धर्म की कौन-सी किताबों में,
ये लिखा है जो हम न पढ़ पाये।
ये तो अच्छा है कमसमझ हैं हम,
वर्ना औरों-से हो गए होते।
कौन अल्लाह को मानता है अब!
कौन है भक्त राम का दिल से!
अपने मालिक के नाम पर तुमने,
क्या गुनाह जो न किया तुमने!
जो ख़ुदा आसमाँ में बसता था,
कितना नीचे गिरा दिया तुमने!
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