चुरा कर इस दिल को जो तुम यूँ चल पड़े
कभी मुड़ कर ही न देखा उदास चेहरे की ओर
कलम मेरी, मेरी आशना बनी
मै सहता गया, वह लिखती गई
रुको ! रुको !
मैने आवाज़ लगाई,
लेकिन क्या तुम्हे लगता है अब यह मेरी सुनने वाली थी ?
मै कहता गया, वह चलती गई
एक मोड़ पर वह रुकी, थमी, एक पल के लिए कुछ सोच, आगे बढ़ गई !
माना कि उसे मनमानी करनी थी,
लेकिन अब तो वह मेरी छोड़ अपनी ही कहानी लिखने चली थी ।
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