।। महाराणा प्रताप ।।
बप्पा रावल, कुंभा, सांगा का वंशज ,उदय- जयवंता बाई का रक्त वो थे,
आचार्य राघवेन्द्र का शिष्य, मां पद्मावती का भक्त वो थे;
गौरव,स्वाभिमान,साहस का प्रतीक वो,
मस्तक शत्रु के सामने ,जिन्होंने कभी न झुकाई,
घास की रोटी सप्रेम स्वीकार उन्हें किंतु,
मुगलों की गुलामी, प्रताप को कभी न भायी।
हल्दीघाटी की रक्त-प्यासी भुमि पे, जब महासंग्राम रचा,
प्रताप का तलवार चमकी ,रणभूमी में कोहराम मचा;
महाराणा का शोर्य, वीरता देख शत्रु थर-थर कांप उठे,
एकलिंग का आशिर्वाद प्राप्त जिन्हें ,भला उनसे लड़ने का साहस कौन करे ?
सत्तर किलो का कवच, अस्सी किलो के भाला का, जिसने वजन हो माप लिया;
युद्धभूमि में बहलोल खान को,अश्व सहित एक ही वार में काट दिया।
मेवाड़ी आश्चर्य की देखो कैसे केसरिया ध्वज निडर अडा,
चेतक-सा अश्ववीर स्वयं,महाराणा का साथी बन यहां खड़ा।
घायल प्रताप को जब ,शत्रु से घिरा उसने भांप लिया,
कटे पैर से अठ्ठाईस गज़ का नाला उसने नांप लिया,
महाराणा के प्राण बचा जिसने अपने प्राण त्याग दिए,
पुत्र समान चेतक वियोग में प्रताप चित्कार उठें।
सत्य हैं राजपूतों को,यूं ही सम्मान प्राप्त न होता है,
चार वर्षीय बालक भी यहां ,मातृभूमि पे मर-मिटने को रोता हैं;
माथे पर कफ़न के ऊपर, जो भगवा बांध के सोतें हैं,
मेवाड़ी-मिट्टी में केवल, स्वाभिमानी वीर ही पैदा होते हैं।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag
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