ना जाने कब ये रात आई,
और दिन खत्म हो गया ।
हम तो संघर्ष करते रह गए साहब....
ना जाने कब ये समय ही खत्म हो गया।
अब चाह कर भी मैं अपने खोए पलो को जी नहीं सकता....
अब चाह कर भी इस समय को मैं दुहरा नहीं सकता।
क्या करू दोस्तो इन्सान हूँ मैं,
खुदा वाले काम नहीं कर सकता ।
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