आँखों पर पट्टी बंधी है लॉकडाउन में भी वारदात ठहर नहीं रही।
आँखों में ख़्वाब लिए नहीं बच्ची, कामयाबी के सपने बुन रही थी।
वो नादान अनजान थी जमाने से अभी, नहीं समझ उसे लोगों की नियत पर।
नन्हें पंखों को काट रहा है, उसके सपनों में कोई चिंगारी लगा रहा है।
नहीं बुझ रही प्यास लोगों की, तो वो नन्ही परियों को शिकार बना रहे।
क्या कसूर था उसका,
उसको भी हक इस आसमान के नीचे खुलकर जीने का था।
बंद कर दी है जुबान कुछ इंसान का रूप लिए बने खूंखार जानवरों ने ।
पंख काट दिए उसके एक झटके में, सपनों तले उसके आग लगा दी।
उसको ही उसकी जिन्दगी से नफ़रत पैदा कर दी।
अब क्या कसूर है उस बच्ची का, जन्मों जन्म वो
कोसती रहेगी ख़ुद को, मैं लड़की क्यों थी या ख़ुदा
तूने मुझे नूर बनाकर फ़िर क्यों चमक छीन ली??
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