वो ज़मीं लेगा या आसमाँ लेगा,
मेरी जान से ज़्यादा वो क्या लेगा,
मैं किसी बात से रूठ भी जाऊँ तो,
मैं समझता था वो मुझे मना लेगा,
वो मेरा हाल पूछ ले तो फिर ग़म क्या है,
जो पहचानता ही नहीं वो नाम कहाँ लेगा,
दर्द-ए-इश्क़ का एहसास भी प्यारा है,
जिसे हो जाये वो क्यों कोई दवा लेगा,
मुकम्मल मौत ही कर सकती है आजाद मगर,
ऐ ख़ुदा तू ज़िन्दगी की कितनी दुआ लेगा।।।
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