महक उठी है तन्हाई तेरे आने के एहसास से धड़कनें हैं बढ़ आई तेरे लबों की प्यास से पलकें हैं शरमाई बीते रात के ख़्वाब से अरमां ले अंगड़ाई अगली रात के ख्याल से सिमटी सी है परछाई यूं हया की बयार से लम्हें भी ये हरजाई इक-इक बीते मानो इक साल से..!!
ख़्वाहिश नही कि श्याम की राधे कहलाऊँ चाहूँ बस कि मै ही मीरा, मै ही रुक्मणी हो जाऊँ फिर प्रेम गाथा मेरी अमर हो या ना हो जोगन फिरूं तेरे नाम की, रसिया बन प्रीत तेरी ही पाऊँ
लिखना पसंद है, बस इसलिए नही लिखती मै सुकून मिलता है दिल को... जब लिखती हूँ मै वक्त बेवक्त नही लिखती मै जज़्बात जब संभलते नही... तब लिखती हूँ मै प्यार जताने मे थोड़ा कच्ची हूँ पर प्यार जब उमड़ता है... तब लिखती हूँ मै हालातों से हारना मुझे आता नही बस थोड़ा थक जाती हूँ... तब लिखती हूँ मै बातों में उलझाने का शौक नही मुझे खुद खामोशी मे उलझ जाती हूँ... तब लिखती हूँ मै