तुम क्या लड़ोगे उससे,
उससे लड़ना तुम्हारे बस की बात नहीं।
वो तो दर्द को भी अपनाना जानती है..
हर महीने दर्द सहना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
दब कर रहना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
अपना घर छोड़ के जाना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
किसी और के परिवार को अपनाना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
दूसरों की खुशियों के लिये अपना मन मारना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
तरह तरह की बातें सुनना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
दूसरों के लिए खुद को बदलना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
सब कुछ सुन कर चुप रहना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
इसीलिए कहती हूं,
उसे और उसकी ज़िंदगी को समझना,
तुम्हारे बस की बात नहीं..
तुम क्या लड़ोगे उससे,
उससे लड़ना तुम्हारे बस की बात नहीं।
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