मै कभी वक़्त को देखती
कभी तुम्हें
मुआ वक़्त मुझे देखकर
मुस्कुराता रहा
और तेज़ बहुत तेज़ क़दमो से भागता रहा
जैसे कोई जंग जीतनी थी उसे
औऱ यहाँ मै
वक़्त को मात देने की फिराक़ में थी
रुक जाता कुछ पल
मोहलत मिल जाती
जी लेती तुम्हारे साथ कुछ औऱ पल
मुआ वक़्त इसे रुकने की आदत ही नहीं
और तुम्हें ठहरने की फुरसत नहीं....
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