QUOTES ON #SIYASAT

#siyasat quotes

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29 FEB AT 10:39






#AAP #arvind #kejriwal

चले थे लड़ने जिससे , उसी से यारियाँ हो गई,
आपकी बातें भी सारी, सिरे से ज़ाया हो गयीं !

क़समें खा खाकर तुम , खड़े थे जिसके ख़िलाफ़,
इश्क़ उन्हीं से कर बैठे,ये क्या मजबूरियाँ हो गयीं !

वो तोहमतें सच थी ,या किसी कहानी का हिस्सा थीं,
जिनकी परछाई तुम्हें गवारा नहीं,वही हमसाया हो गई !

बंगला तुम्हारा,गाड़ी तुम्हारी,हुकमरानी भी ठीक है,
ले देकर एक ग़ैरत बची थी ,वो भी स्वाहा हो गई !

मफ़लर,खांसी,स्वेटर,चप्पल,और नीली छोटी सी गाड़ी,
सीढ़ियाँ थी सियासत की,चीज़ें खूब दिखावा हो गयीं !

ठगी हुई लग रही है दिल्ली,ठग के राजा बनने के बाद,
पानी,बिजली,सड़कें ,सौहार्द, बातें सारी छलावा हो गयीं !!

Vivek Sharma



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30 JAN AT 16:52

ज़रूरी क्या है जब तलक़ कोई समझे,
सियासत मुस्तकबिल को खा जाती है.

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29 JAN AT 18:53

Tum hamare Hauslon ki Udan ka Andaza nhi laga sakte ...
Hum Machli ko Udana bhi Jante hai aur Parindo ko tair'na bhi sikha sakte hai ...

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28 JAN AT 7:38

*शब्द बाण*

पहले जिस पर था फिदा,
चला उसी से ऊब
तन मन मेरा डोलता,
हर मौसम में खूब
हर मौसम में खूब,
बदलता रहता साथी।
गर्मी में कुछ ठंड,
धूप जाड़े में भाती।
सतविंदर अब प्यार,
सियासत जैसा कह ले
तज प्रेमी जो आज,
भला वह जो था पहले।

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27 JAN AT 15:44

ऊजाड़ कर बस्तियाँ मकान कौन दान करता है
मैं सब जानता हूँ
फोड़ कर आँखे चश्मे कौन दान करता है
#_सियासत

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19 DEC 2023 AT 11:45

शुस्त-ओ-शू कर रही एक पार्टी सियायी लीडर को ईटीपी सा,
आप कितने गंदे हो पहले बताते हमला कर फिर मिला लेते।

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7 DEC 2023 AT 8:57

ज़ुबां और उंगलियों को बादशाहत यहां पर,
ये बात और के हुनरमंद उनमें से कोई नहीं।

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10 AUG 2023 AT 0:01

के कुछ इस कदर सियासत हुई हमारे मोहबत की गालिब
किसी ने धर्म के नाम की चिंगारी लगा दी
और मै उमेदवार-ए-काबिल उसके प्यार के वोट से वंचित रह गया!!

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6 AUG 2023 AT 7:53

ये कैसे वक्त को देख रहे हैं हम
यहां सियासत दारोंकी हमदर्दी ख़तम होते देख रहे हैं हम
और इस ज़माने से इंसानियत ख़तम होते देख रहे हैं हम

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24 JUL 2023 AT 10:25

मुझ को तेरा ये नादां किरदार ले बैठा

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दो पलों का हिसाब क्या करने बैठा
मुझ को तेरा ये नादां किरदार ले बैठा
कभी हम भी गायेंगे महोब्बत के तराने
अभी तो मुझ को ये जमाना ले बैठा

बड़ी बेरुखी हो गई है तेरे लहजे में
मैं इसको भी तेरा प्यार समझ बैठा
कहों तो महोब्बत के दो दो हाथ कर ले
दास्तान की अधूरी किताब लिख बैठा

बड़े मग़रूर है वो ज़श्न मनाने में
खुद को कफ़न के हवाले कर बैठा
महोब्बत के नाम पर अलगाव फैलाते है जो
उनको अब मैं अपने से किनारे कर बैठा

सजने सँवरने के दिन आएंगे बहुत
अभी मैं फर्जों की तलवार उठा बैठा
सियासतदारों से कह दो की अब
सियासत के सारे दाँव पेंच सीख बैठा

सुना है सावन बड़ा हरियाली लेकर आता है
मैं तेरे हाथों की महेंदी हरी ही छोड़ बैठा
ज़र्रे की खुशी की ख़ातिर जान-ए-जाना
मैं साम्राज्य का तख्त-औ-ताज छोड़ बैठा !!

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