भोर का प्रकाश थी ,
नित नया उल्लास थी ,
जो जल की शीतल बूँद थी ,
फागुन की हल्की बयार थी ,
सबके ह्रदय की आस थी ,
वो जो स्वयं बारह मास थी ,
गोधूलि का जलता प्रकाश थी ,
वो ठंडी रातों का आराम थी।
आज क्यूँ वह मौन थी ?
शब्द कह कर भी नि ; शब्द थी,
अमावस का घना अंधकार थी
कैसी ये काया मलिन थी ,
देह प्राणहीन थी,
या प्राण में न चेतना थी ,
आज क्यूँ वह मौन थी ?
©️PS
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