हुंकार हुई फिर हिमालय की
गंगा में मची कैसी हलचल हैं
सिंघू ने अपना सीना ताना
राष्ट्र को तेरी ज़रुरत हैं
अश्वमेघ का ये घोष कैसा
मिला रहा कौन नजर हैं
हुंकार हुई हैं गिद्धो की
शेरो की आज जरूरत हैं
तू अंतर मन की सोच में खोया
जब वक्त ने ले ली करवट हैं
शहीदो की गाथा बोले
फिर से बलिवेदी की जरूरत हैं
बोल उठी हिंद की मिट्टी
बलिदानो की ज़रुरत हैं
भारत माँ का आँचल बोले
मुक्षको तेरी ज़रुरत हैं
जाग उठी हैं रण चंडी
नरमुंडो की जरूरत हैं
नभचर से आकाश भी बोले
खतरे में तेरी इज्जत हैं
कमल पुष्प अपना मुरझाया
वीरो की जरूरत हैं
गांधी का चरखा भी बोले
राष्ट्र को तेरी ज़रुरत हैं
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