वो लाड करती रही जिस बेटे को जैसे भक्ति भगवान की तरह छोड़ आया वो उसे वृद्धाश्रम जैसे किसी अनजान की तरह जिसे ना वो करती थी आँख से ओझल एक महबूबा के लिए फेंक आया उसे जैसे किसी बोझ की तरह।।
देख तेरी करतूतों को, हैवानियत की हदें भी कर रही तेरी कठोर निंदा है! जाने कितने फूलों को तो तू तोड़ चुका, आज मासूस कली भी ना बख्शी तूने! तेरा हवस प्रेम देख, दरिंदगी भी तुझ पर कितनी शर्मिंदा है! हाय! तू कैसा दरिंदा है|
मांगने मंदिर में हम मोहब्बत की दुआ निकलें , अहसास हुआ तभी हमें की वो राधा-कृष्ण तो खुद ही मोहब्बत में जुदा निकलें, जुदा होके भी एक ही हैं दोनों आखिर वो खुदा जो निकलें।।