लिखने की लाख कोशिशें की पर अब कुछ लिखा नही जाता। अल्फाजों के पुलिन तक कलम द्वारा पहुंचा नही जाता। कलम की श्याही पर अब अल्फाजों का रंग चढाया नहीं जाता। कलम द्वारा अब विचारों को ज़ाहिर किया नही जाता।
मेरी खामोशी भी आज खामोश है चुप्पी साधे ये लब्ज आज बेहिसाब है गुमनाम से है अपने ख्यालों में पुराने बीते दिनो की यादो में काश!! फिर हम वही लौट चले जाए जिन क्षणों को जी भर जीया करते थे ,उनमें पल भर वापिस लौट आए।।