वह शिखर पर पहुच घमंड में चूर था में बगल में खड़ी उसके पर वह हो गया दूर था वह इतना इतरा रहा था जैसे हो गया वह चांद था वह मुझे राह का कंकड़ समझ ठोकरे मार रहा
शिखरों का फ़र्क़ बस ये है, कि किसी के लिए शिखर सीमित है और किसी के लिए लगातार बदलता जा रहा है, कोई साइकिल पर भी खुश है, और कोई प्राइवेट जेट में भी साँस नहीं ले पा रहा है।
बरसात से यूं ही मुलाकात नहीं होती है "जनाब" उसके लिए धरती को सूरज के तेज़ धूप से जलना पड़ता है, और शोहरत के शिखर पर चढ़ने के लिए "जनाब" घुटने के बल पर भी तेजी से चलना पड़ता है...!!