त्रिपुंड तिलक भाल पर, धारण गले मे शेषनाग
शक्ति स्वयं विराजती, है जिनके वाम भाग
अस्त्र शस्त्र त्रिशूल है, जग चरणों की धूल है
कैलाश ही निवास है,भोला भक्तों की आश है
स्वयं जो महाकाल है, वस्त्र व्याघ्र छाल है
त्रिदेवों में एक देव है, शिव मेरे महादेव है
जो सृष्टि संघारक है, संसार के संचालक है
है रुद्र ही जगतपिता,भक्तों के उद्धारक है
नीलकंठ ही नटराज है, बिल्व पत्र ही साज है
शशि स्वयं ही ताज है,भोला भक्तों की लाज है
भूत, प्रेत, नन्दी साथ है, मेरे प्रभु ही भूतनाथ है
त्रयंबकेश्वर नागनाथ है,सदा भक्तों के साथ है
उत्तर में केदारनाथ है, काशी में विश्वनाथ है
द्वारका में नागेश्वर है, देवघर में वैद्यनाथ है
ॐ ही शिव नाद है, ॐ ही संवाद है
ॐ ही ब्रह्मांड है, ॐ ही प्रसाद है।।
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