"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"
फिर उसके पैरों में बेड़ीया डाल उसके
ख्वाहिशों का गला दबाओ
घर की लक्षमी कहते हैं उसको
पर धनवान बनने नहीं देते हैं उसको
चाँद सी सुंदर कहते हैं उसको
पर वक्त-बे-वक्त ग्रहण बन
चमकने से रोकते है उसको— % &कभी उसके चरित्र पर उंगली उठाते हैं
तो कभी आँखों से उसके कपड़े उतारते हैं
सुना था जंगल में दरिंदे जानवर रहते हैं
पर रोड पर ही दरिंदे भेड़ियों को देखा है हमनें— % &अरे मेरे मौला
कहूँ तो क्या कहूँ मैं
कुछ लोगों की निगाह तो कमाल की पारखी होती है
छाती का नाप भी बता देगें
और वो भी इतना सटीक कि कहने ही क्या— % &किया है महसूस हमने
सुना है हमनें
कोई कहता है ये आम है, तो कहता है कोई संतरा है ये
छुने की इच्छा होती कई को
सच कहूं तो नोचने कि चाहत होती है उस फल को उनको
चौदह साल का बच्चा भी मेरे जिस्म के लिए भुखा है
साठ साल का बुढ़ऊ भी मेरे साथ सोने के लिए मर रहा है
साथ काम करने वाला भी मुँह से लार टपका रहा है
माना कि छोटे कपड़े पहनती हूँ
पर क्या हिजाब वाले सुरक्षित हैं ? यह सवाल जरा पुछो तो
खैर कमीनों ने तो नवजातों को भी नहीं छोड़ा हैं— % &यार मैं कोई खिलौना नहीं हूँ
ना ही कोई जिस्म हूँ
मुझमें भी एक जान है
जिसकी जान तुम सब रोज निकालते हो
घुट घुट के जीने पे मुझको क्यो आमादा करते हो
कहाँ सुरक्षित हूँ मैं
"बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ"
पर काहे को?— % &इन दरिंदों कि दरिंदगी सहने को?
मुझे नहीं लगता है, ये लोग जीने देंगे
खुल के साँस लेने भी देगें
कोई कहता है
चिड़िया होती है लड़कीयाँ
पर पंख नोच दिये जाते है उन चिड़ियों के
मायका कहता है
ये बेटियाँ तो पराई है
ससुराल कहता है
ये पराये घर से आई है
अब मेरा मौला ही बतलाए
आखिर बिटियाँ किस घर के लिये बनाई है— % &तुम तो फल और फुलों कि रखवाली के लिए
उसमें कीटनाशक डाल कर
उस फल-फुल कि गुणवत्ता कम ही कर सकते हो
पर कभी कोई कारगार उपाय तो तुमसे होगा ना
बस बैठ ज़माने पे उंगली उठाते फ़िरोगे
"बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ"
फिर दरिंदो को सौंप दो
इस से बेहतर है
पैदा होते ही ज़हर दे दो इन बेटीयों को— % &भावनाऐं अगर आहत हुई हो
तो हमें माफ़ करने के बजाय
खुद में बदलाव लाईये— % &
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