शायर ए कलम हूँ, लफ़्ज़ों की हरकतें पेहचानता हूँ, एक हद तक दिलसे, अमन चैन मानता हूँ, सच ये भी है, के शमशिर ए रावण साथ रखते है, अब जो भी तकलीफ दे, उसके दिलको चीरना जानता हूं।
तू दूर रहकर भी मेरी सांसो में शामिल सी है इस शांत माहौल में भी तेरी यादों की तांडव सी है तुमने छोड़ दी मेरा साथ कि मैं टूटे पत्तों की तरह बिखर जाऊं पर देख तेरी ये बद्दुआ आज भी मेरे लिए दुआ सी है