पहले उस्से मोहब्बत रूह तलक की मैंने,
फिर हरकते मुझे अपनी जिस्मानी करनी पड़ी,
और एक छाप रह गई थी उसकी मेरे जिस्म पर,
अकेले में मिला तो वापिस निशानी करनी पड़ी,
और ताश कि गड्डी ले हाथो मे
मुझे जोकर समझता रहा......२,
फिर पत्ते बदल हमे बेईमानी करनी पड़ी,
गैर से हसकर बात कर, खूब जलाया हमको,
हमे भी हाथ थाम किसी का फिर शैतानी करनी पड़ी...!!
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