दिल में तेरे अगर कोई मयखाना होता
तो मेरा वहां रोज़ का आना जाना होता
फिर गश्त लगाता तेरी गलियों से रोज़
घर में कुछ कहता फिर कोई बहाना होता
दर-दर जा कर, दिल को सुकून तलाशता
आखिर, जो तेरी ही बाहों में आना होता
तेरी आँखो से मुहोब्बत के जाम लगाता
जाम तेरी आंखों का लगाकर शर्माना होता
सब हमें निगाह-ए-आशिक़ी से देखते
ना कुछ नया होता, ना कोई पुराना होता
अद्विक, सफहों पर टूटे मानी रख लेता हूं
जाने कब फिर लिखने का जमाना होता
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