लड़ो कि न मलाल हो
कि बच गया,कुछ रह गया...
लड़ो कि चुप रहे कहीं,
कोई स्वप्न फिर से ढह गया...
लड़ो कि ख़्वाब जगते हों,
हर रात अपनी आँख में...
लड़ो कि रूह सुलगती हो
फिर जिस्म के ही राख में...
लड़ो कि तुम रुको नहीं,
जो मन में अपनी ठान लो...
लड़ो कि तुम समझ सको
लड़ो कि खुद को जान लो...
लड़ो कि शाश्वत है वो,
जो अंत से डरा नहीं...
लड़ो कि जिंदगी यही,
जो लड़ गया मरा नहीं...
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