शिक्षा तो ले रहे,संस्कार कहाँ से लाओगे,
थाली भरी पड़ी,पर भूख कहाँ से लाओगे।
सोशल साइट पर बहुत,डिअर कहने वाले,
कहने केअपने,अपनापन कहाँ से लाओगे।
छुपा रखा है,झूठी मुस्कानों के आवरण में,
ज़ख्म गहरे हैं पर,मरहम कहाँ से लाओगे ।
कट जाता है बोझ तले,येदिन चलते-चलते,
दिन उजियारे,महकती रात कहाँ से लाओगे।
फ्रेंक तो हैं,दायरे भी कुछ कम ना दिखते,
'सीमा'ठहरी है, खुलापन कहाँ से लाओगे।
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