तुम सावन के पवित्र माह से,
मैं उसमें आने वाली सोमवार प्रिये !
तुम शिव के नगर बनारस से,
मैं उसमें मणिकर्णिकम घाट प्रिये !
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तुम ठहरे केदारनाथ के धाम से,
मैं वहाँ आने वाली जोखिम बाढ़ प्रिये !
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तुम पावन नगरी उज्जैन से,
मैं उसमें बहती कल कल गंगा की धार प्रिये !
तुम शिव पर अर्पण पूर्ण अभिषेक से,
मैं उन पर उपस्थित बेल पत्र की साज प्रिये !!
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