इंसान परिंदो के घर उजाड़ कर... अपना घर बना रहा है... परिंदो को दुख देकर... खुद खुशियों से उछल रहा है... खुद उनके घर उजाड़ कर .. अपना आशियाना बना रहा... खुद सुख से रहने लगा है ... लेकिन परिंदो को खुले... आसमान में उड़ने को मजबूर कर रहा है ...😒
जीवन देकर तुम हमें अपनी अहमियत समझाते हो बेवजह हम तुम्हारा गला घोट कर खुशियाँ मनाते हैं विकास उन्नति के नाम पर हम खुद को भटकाते हैं जीवन जीना छोड़ कर हम प्रदूषण को अपनाते हैं
सृष्टि के निर्माता तुम्ही ,तुम्ही हो पालनहार हरा भरा करके जग को किया जगत कल्याण पर मनुष्य की भूल है जो द्वेष भाव से जीता है खुद को खुश करने खातिर पेड़ों का जीवन लेता है....