मैं हूँ बहती हवा, मैं हूँ फिज़ा, मैं हूँ बसंत-बहार
देखना हो जो मुझे,तो प्रकृति को ही बस निहार
मैं हूँ, वो अनंतकाल से लहराता अथाह सागर
मैं सिमटा धरा पर,रहा पीने को बस कुछ गागर
मैं हूँ पर्वतराज, मैं हूँ बर्फ़ानी, मैं हूँ सदियों से गिर
मैं हूँ उसके बदन से अनवरत कलकल बहता नीर
मैं हूँ हरा-भरा मैदान, मैं हूँ मरू जो हैं धीर-गम्भीर
मैं हूँ बारिश की सोंधी मिट्टी, मैं उसमें खिंची लकीर
मैं हूँ कानन, मैं हूँ पेड़, मैं हूँ पुष्प, मैं रहूँगा सदा चिर
मैं हूँ उनमें बसा जीवन, मैं हूँ तो वन्यजीवों का शरीर
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