#मूर्ख मानव
ए मूर्ख मानव, वनों को यूं ही काटते जाओगे !
फिर प्रतिकूलता की स्थिति में, जीवन कैसे बीताओगे ?
ना फूल होंगे, ना फल होंगे, ना बचेगी हरियाली।
ना ही मीठे स्वर होंगे, उदास रहेगी हर बाड़ी।
फिर अशुद्ध वायु में, तुम श्वास कैसे ले पाओगे ?
ए मूर्ख मानव, वनों को यूं ही काटते जाओगे !
लाखों जीव बेघर होंगे, उजड़ेगा इनका घर-बार।
भटकने को मजबूर होंगे ये, इन्हें पीड़ा होगी अपार।
फिर क्या इन जीवो को, तुम अपने साथ सुलाओगे ?
ए मूर्ख मानव, वनों को यूं ही काटते जाओगे !
ए मूर्ख मानव, वनों को यूं ही काटते जाओगे !
फिर प्रतिकूलता की स्थिति में, जीवन कैसे बीताओगे ?
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