आहिस्ता आहिस्ता,
तेरे बिना,
अब जीना सीख रही हूँ।
हर साँस के साथ,
तेरे नाम को भूलना,
सीख़ रही हूँ।
रोज़ाना नींद में,
तेरे ख़्वाब देखने की आदत छोड़ना,
सीख रही हूँ।
तेरे इंतज़ार की आस में,
रातों को ना जागना
सीख रही हूँ।
तेरी रौशनी से रुख़ मोड़,
अब अपनी धूप में जीना सीख रहीं हूँ।
हाँ आहिस्ता आहिस्ता,
तेरे बिना,
अब जीना सीख चुकि हूँ।
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