QUOTES ON #SARIKA_SAXENA

#sarika_saxena quotes

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17 JUN 2017 AT 16:27

ओढ़ लूँ तुम्हें आँचल सा,
लपेट लूँ प्यार को तुम्हारे
अपने इर्द गिर्द;
चस्पाँ कर लूँ
तुम्हारे होठों को
अपनी पेशानी पे,
तुम्हारी महक का इतर
मल लूँ अपनी कलाइयों पे
तुम्हारी आवाज़ की खनक की
पहन लूँ चूड़ियाँ
तुम्हारे नग़मों की गुनगुन से
खनकते नपुर
पहन लूँ अपने पैरों में
मैं ना रहूँ मैं,
बस तुम हो जाऊँ,
इश्क़ करूँ ख़ुद से ही
और ख़ुद पर ही मिट जाऊँ।

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11 MAY 2017 AT 7:44

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23 MAR 2017 AT 18:39

गेसुओं में मेरे तेरे प्यार का संदल महकता है।
मैं हवाओं सी एक लड़की हूँ, मुझसे जंगल महकता है।

चाँदनी की मेरी पैरहन, किरणों के मेरे गहने
भरा फूलों से जो तूने, मेरा आँचल लहकता है।

भर दिया सितारों से, तूने मेरी माँग में अफशां
तेरे लम्स की हिद्दत से, ये कोरा बदन दहकता है।

मैं राधा भी, मैं मीरा भी, और तेरी रुक्मिनी भी हूँ
तेरे हर रूप में लेकिन, तू बस कान्हा ही रहता है।

-सारिका

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30 AUG 2017 AT 8:38

हर साल पड़ जाती है एक गिरह
इस जीवन के धागे में
मना लेते हैं हम सालगिरह
हर बरस जाने किस भुलावे में
कम होती हैं जीवन की साँसे
और ख़ुश हम हो लेते हैं
बात है बस यही ख़ुशी की
कि बस जीवन चक्र पूरा होने को है।

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19 AUG 2017 AT 9:39

कभी हँसाती है तो कभी पलकें भिगो देती है।
ज़िंदगी रंग भरी एक ख़ूबसूरत पहेली है।

मौत का कभी कोई रंग देखा है क्या?

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12 JUL 2017 AT 16:58

आज कह दो सितारों को
छुपा लें रोशनी उनकी
अंधेरों में ही होती है
झिलमिल रोशनी चाहत की
मिला है साथ पिय का आज
बनी हूँ मैं सुहागन आज
भुला कर के सारी लाज
बनी दुल्हन मैं साजन की
नहीं अंजाम की परवाह
है ये बेला समर्पण की।

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18 JAN 2017 AT 21:28

शब्द.....
क्या हैं आखिर शब्द? अक्षरों से भरी एक उंजलि ही तो हैं,
जो बनते हैं उदगार कितने बेचैन ह्र्दयों का...
कभी गीत का रूप लेते हैं ये शब्द ,कभी नज़्म का।
कभी कहते हैं कोई कथा, कभी बयान करते हैं कोई किस्सा।
कभी मौन होकर ही कह देते हैं किन्ही अनकही बातों को।
उकेर सकते हैं ये शब्द पत्थर की किसी मूरत को...
कभी ये शब्द इन्द्रधनुषी रंग बिखेरते हैं
किसी चित्रकार की तूलिका से।
शब्दों का नहीं है कोई आदि या अन्त ...,
युगों से ये खुद ही हैं पहचान अपनी गवाह हैं इतिहास के!
इन्हीं जादुई अक्षरों से भरी ये उंजलि ...
अर्पित है ये शब्दांजलि!

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5 JUN 2017 AT 22:41

काट रहे थे पेड़ वो लकड़हारे
थक कर फिर वहीं ज़मीं पर बैठ गये।
पेड़ों का बड़प्पन तो देखिये ज़रा
टहनियाँ अपनी बढ़ा कर
उन्हीं लकड़हारों को छांव दे गये।

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5 JUL 2017 AT 9:04

आधी रात
आधी नींद
आधा चाँद

आधी मुलाक़ात
आधी बात
आधा प्यार

आधी मैं
आधे तुम
अधूरे जज़्बात

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25 MAY 2017 AT 10:28

कल बिस्तर की सिलवटें तेरी तौलिया से गीली थीं,
आज जो तू नहीं है तो बस तकिया ही सीली है।

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