"बेइन्तहां इश्क़"
सुन रहे हो अगर मुझे ,तो मेरा एक काम कर दो,
करते हो बेइन्तहां मोहब्बत, तो सरेआम कर दो।
नहीं गुजरता अब ये मंजर, कम्बख्त तन्हा रातों का,
जितना बचा हूँ अब, तमाम उम्र अपने नाम कर दो।
नहीं कर सकते शामिल, मुझे अपनी रूह में अगर,
बस नाम से अपने, सारे जहाँ में बदनाम कर दो।
बहुत हुई गुफ़्तगू हमारी, यूँ चाय की मुलाकातों पर,
ना सुने गर ज़माना,पूरे शहर में कत्ले-आम कर दो।
बहुत जिद्दी है दिल मेरा, हर पल यूँ तुम्हें गुनगुनाता है,
तुम भी सुनो अपने दिल, नाम से मेरे कोहराम कर दो।
घूमने लगे दरिंदे यहाँ आजकल मोहब्बत की शक्ल में,
पता कर सब ठिकानों का, इनको बस इंसान कर दो।
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