QUOTES ON #SANRACHNA

#sanrachna quotes

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27 MAY 2020 AT 7:45

लाख सुना हो तू ने की हम पत्थर दिल हैं सनम
घड़ी भर को आगोश में आने दे, पिघल जाएंगे

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24 OCT 2019 AT 18:29

दिन की रौशनी में
हँसते मुस्कुराते चहरे
रात के आँचल में लिपटते ही
क्यूँ बन जाते हैं
दीवारों पर रेंगते
जिस्म पिपासु साए...

घात लगाए
दबोच लेने को आतुर
नोंचने पर आमादा
हर वह जिस्म
जिसमें हो हरारत
कच्चा, पक्का, जीवित, मृत...

इन निशाचरों की बदबू में
क्यों घुली मिली सी होती है
किसी अपने की महक
अक्सर...

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5 MAY 2020 AT 12:28

उम्र की ये दुश्वारियां तो रोज़ बढ़ती जाएँगी
वक्त रहते ही मोहब्बत कर गुज़रना चाहिए

जंग न लग जाये यारों इस दिल ए नादान को
रंगो- रोगन इश्क का थोड़ा तो चढ़ना चाहिए

उम्र निकली जा रही है फ़ाक़ा मस्ती में यूँ ही
इश्क में पड़कर किसी के काम आना चाहिए

एक दिन मर जायेगा गुमनाम सा ही तू यहां
नाम तेरा भी जुबां पर लोगों के आना चाहिए

है जवां वो ही के यारों इश्क जिसने कर लिया
रोग ये लग जाये तो, न फिर मुकरना चाहिए

वो हसीं मिल जाएगा तुझको ज़रूरी तो नहीं
हर हसीं चेहरे पर थोड़ा थोड़ा मरना चाहिए

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25 MAY 2020 AT 13:28

कहर कोरोना का मचा, जीवन मे उत्पात
सबको इक सा डस रहा, देखे जात ना पात

हैंडवाश से हाथ जो किये नही सेनिटाइज़
मिले कोरोना का उसे, तुरत गिफ्ट सरप्राइज़

मुँह पर कपड़ा बाँधिये, तब करिए प्रस्थान
अत्ति ज़रूरी कार्य हो, या लाना सामान

फैशन की मत सोचिए, जीवन है वरदान
सुंदर वो इंसान है, चढ़े मास्क जोऊ कान

गजभर की दूरी रखें, हाथ छुए न हाथ
करें नमस्ते दूर से तो मिले जीवन सौगात

बड़ा विकट ये रोग है, दिखे कहु न सुनाए
अनजाने में वार करे और चुपके से हो जाय

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20 OCT 2019 AT 8:16

'अयोध्या'
(निर्णय प्रतीक्षा में)

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12 APR 2019 AT 20:17

तमन्नाओं को आओ, ऐसे बाँध कर रख दें
के जैसे इस ज़मी को आसमाँ पर टाँग कर रख दें

सितारे हैं तो चमकेंगे, चमकता चाँद भी तो है
उठेंगे जो मचल के हम, रवि को फाँद कर रख दें

हवाओं का जिगर क्या,जो अपने बाल बिखराए
जो हम जिद पे आएँ, भँवर को थाम कर रख दें

संभलना ऐ जहाँ वालों, के हम आगाज़ करते हैं
जरा सा जोश में आयें ज़मीं को साँध कर रख दें

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26 MAY 2017 AT 0:06

फरिश्तों सा दिल लेकर पैदा हुआ था मैं,
ज़िन्दगी के तजुर्बों ने इंसाँ बना दिया...

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1 FEB 2019 AT 9:07

मैं उलझनें ज़िन्दगी की सुलझा तो लूँ
पर सोचता हूँ खाली बैठ करूँगा क्या

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17 MAR 2019 AT 10:06

सुबह की मॉर्निंग वॉक पर
एक सूखा पत्ता पैरों में आया
और शायद दर्द से चरमराया..

यूँ तो आदत है मेरे कानों को
दिन भर किसी न किसी की
चरमराहट सुनते रहने की..

रोज़ मर्रा की वॉक में
हर एक आमादा है चढ़ जाने को
किसी न किसी के ऊपर पैर रख कर..

और कुचले हुए लोग बस
चरमरा कर रह जाते हैं
इस पत्ते की तरह
शायद कहीं से टूट भी जाते हैं
हर गुज़रते हुए कदमों के
अनायास ही चढ़ जाने पर
और चढ़ने वाला है कि बेफिक्र
इस चरमराहट से अनिभिज्ञ,
अपनी धुन में बढ़ता जाता है
फिर किसी और पर से गुज़र जाने को..

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24 MAR 2019 AT 13:28

वक्त क्या है
महज़ फ़ासला है
दो लम्हों के बीच..

एक मुअम्मा है
ज़िन्दगी का
समझ से परे..

लम्हे ख़ुशगवार हों
तो पंख बन ऊगता है
बदन पर..

लम्हे बोझिल हों
तो बन जाता है
मकड़ जाल...

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