आवाज़ भी ना हुई और सब टूट कर बिखर गया, जिंदगी दी थी मैंने अपनी जिनकी हाथों मे वो सक्स भी मुझसे रूठ गया, अब तो साँसे भी लेता हूँ तो दम गुट्टा हैं मेरा, कुछ इस कदर वो मुझसे मेरे जीने का हक़ भी ले गया......!!
एक दिन मरने के लिए हम कितने सालों की दूरी तय करकें आतें हैं इस बीच न जाने हम कितनों का दिल दुखाते हैं और कितनों को तन्हा कर जाते हैं ज़िन्दगी की सफ़र को तय करते करते कितने फासलों को तय कर जाते हैं उन फासलों को तय करते करते कितने रिश्ते में फासले आ जाते हैं कुछ कहा नहीं जा सकता कौन सा राह किसके लिए नया मोड़ ले आये उसी राह को हम अपना,सा जाते हैं करवट बदल बदल कर ज़िन्दगी जी लेते हैं कभी चुप हो कर तो कभी बोलकर रिश्ते खो जाते हैं बचपन से जवानी गुजर गया बिना बात सुने बुढ़ापा आया तो हर बात को अनसुना कर जाते हैं और जब जीवन में आख़री साँस ली जाती हैं तो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से छोड़ जाते हैं Shweta