धर्म है सच,कर्म है 'सच'
ईश्वर के कण कण मे 'सच'
नदी के बहते जल मे 'सच'
हर सवाल के हल मे 'सच'
पेडों के शीतल छाव मे 'सच'
मरहम बनता जीवन के घाव मे 'सच'
देर सवेर मंज़िल तक लाता 'सच'
प्रबल,अटल,आँखों मे तेज जगाता 'सच'
पोथी ग्रंथों से कहाँ कभी आया है 'सच'
व्यवहार है,विचार है, ज़िन्दगी का सार है 'सच'
ना जाने कितनी दफा झेली हार है 'सच'
मगर खुद की नज़रो मे खुद के लिए आता प्यार है 'सच'।
© रंजीता अशेष
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