काश जिंदगी मां की सूरत सी होती,
काश मेरे अपनो की सीरत भी मेरी मां सी होती...
मां समझ जाती हैं मेरी मजबूरी बिन कहे कैसे और सिर पे हाथ रख देती हैं जैसे कहती हो: मै हु अभी...
कहा चश्मा पहनती है मां, पर पता नही कैसे उन्हे तो मेरी परेशानियां साफ साफ दिख जाती हैं...
मां पढ़ी लिखी नही है फिर भी कैसे आंखें मेरी पढ़ लेती है...
मैने कहां की हैं जिंदगी की शिकायतें कभी, फिर भी जाने कैसे सब समझ जाती हैं...
काश भाई हर वक्त साथ होता ताक़त बन कर,
काश पापा तुम्हारी सी नजरें हर वक्त मेरे पास होती...
स्वार्थ में डूबे कपटी रिश्तों में सुकून कहा हैं मां, सब देख समझ कर भी अनजान ही बनी रही हू मैं कब से...
तुम कहती हो ना मां गंदगी में खुद को गंदा ना करो बस "भगवान की लाठी पर भरोसा रखो",
सच कहती हुं रखा है अब तक और बुरी यादें समझ कर सब भूल जाना चाहा है,
पर एक बार फिर वो सब वापस याद आने लगा है और रात रात भर जगाने लगा है...
शायद एक बार फिर वो लाचारी, वो कठिन परीक्षा का वक्त आने लगा है...
~ Laxmi B. Yadav
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