जाने क्या उस दीपक की तक़दीर में लिखा होता है,
जो चारों तरफ रोशनी देता है मगर उसके खुद के नीचे
अंधेरा होता है,
मुस्कुराता है वो जलते हुए भी सबके सामने,
फिर वही बदनसीब अकेले तन्हाई में रोता है,
लौ जलने तक क़दर होती है जिसकी ज़माने में,
बुझ जाने पर कहीं कोने में फेंक दिया जाता है,
ख़ाक हो जाता है उम्र भर दूसरों को खुशियाँ देते-देते,
मगर वो बदनसीब उम्र भर तन्हा ही होता है....।।
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