मुसलसल चल रहे हैं चल रहे हैं चल रहे हैं हम, फ़क़त इस वास्ते हर एक को अब खल रहे हैं हम। मिली है सिर्फ़ ना ही आज तक हमको ज़माने से, तभी तो आपकी इस हाँ पे आँखें मल रहे हैं हम।
दरिया हूँ फिर भी मुझको समन्दर नहीं मिला, बदले मकान मैंने मगर घर नहीं मिला। कुछ दिन से गूँजने लगी थीं सरसराहटें, झाँका जो दिल में कोई भी अंदर नहीं मिला।
हमेशा यों नहीं अपना ये दिल बेज़ार करता था, दुआएँ मैं किसी के वास्ते हर बार करता था। मेरी बर्बादियों का है सबब इतना ही बस, यारों, मैं अपने आप से ज़्यादा किसी से प्यार करता था।
मैं कहाँ से हूँ इसका इल्म तो मुझे भी नहीं, मेरे मकां में भी मेहमान नज़र आता हूँ। मेरा लिबास तय करेगा यहाँ कौन हूँ मैं, जिस्म से तो फ़क़त इंसान नज़र आता हूँ।
तुम्हारी आँख के मोती हमारी आँख से निकले, हमारी आँख के पत्थर तुम्हारी आँख से निकले। ख़ता तो दिल ने की थी ये ही तुमसे इश्क़ कर बैठा, और उस पर ज़ुल्म कि आँसू बेचारी आँख से निकले।