वो लाल गुलाब
जिसे अपनाते वक़्त
हुआ था मैं कुछ बाग-बाग
धड़कनें थम सी गयीं थी
जब लिया था मैंने
अपने हाथों में तुम्हारा हाथ,
आज भी कहता है मुझसे
कि लौटा दो वो हसीन कायनात
और बह जाओ मुझ में
बन के एक नशीली शराब
देखो मुरझा चुका है अब
तुम्हारा वो लाल गुलाब
वो लाल गुलाब
जो सजता था तुम्हारी
रेशमी ज़ुल्फ़ों के जाल में
और करता था हमें घायल
निकलवा कर तारीफों के सैलाब
मानो हो घनिष्ठ अहबाब,
बिखरा हुआ रखा है आज
चाहता है वो भी कि
मिले उसे इश्क़ की बरसात
कि सँवर जाएं एक बार
फिर से कुछ रिश्ते खराब,
देखो पुकारता है तुम्हे
तुम्हारा वो लाल गुलाब |
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