अब कहाँ ये रास्ते मंजिल तक ले जाते हैं,
कमबख्त ये रास्ते भी अब झूठ ही दिखाते हैं।।
राहगीर भी जैसे मुझसे मुँह मोड़कर रखें हों,
और कमबख्त ये रास्ते भी झूठे मन्ज़र से ही मिलवाते हैं।।
कंकड़ कंकड़ पत्थर पत्थर पैरों से टकराते हैं,
और कमबख्त ये रास्ते भी मुझपर धूल ही उड़वाते हैं।।
कौन सा मोड़ है मेरा कोई संदेशा नहीं बताता ये,
और कमबख्त ये रास्ते भी दर बदर ही मुझे भटकाते हैं।।
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