विश्वास की ड़ोर
ये जो तुम उम्मीदों को ,
आत्मविश्वास की डोर से थामे रखे हो ,
पतंग की उड़ान एक ड़ोर में समेटे रखे हो ।
है ये उम्मीदों का पतंग टकराता समाज के रीती-रिवाजों से ,
सुख-दुःख के माया जाल से ।
है हवा के सहारे ऊपर उठना , गिरना-संभलना ।
ये जो तुम पतंग को हवा में ही हवा की विपरीत पकड़े रखे हो।
तूफानों में जब घीर जाओगे , तुमको लगेगा ये समाज बुरा ,
ये डोर भी टिमटीमाती दिये की लौ ।
इस नाजुक मोड़ पर वापसी भी छलाबा होगा ,
रुक पाना भी न संभव होगा ।
तुमको ऊपर उठना होगा , तूफानों से लड़ना होगा ।
इस डोर को पकड़े रखना होगा ।।
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