ये वक़्त, कैसा वक़्त है ?
बह रहा बस रक्त है
धरती पर जीवन का
हो रहा जैसे अंत है
हर जगह, हर घड़ी
उठ रहा तूफ़ान है
जिन्दगी की शाख कोई
भक्ष रहा शैतान है
मृत्यु है नृत्य करती
मच गया हहाकार है
पाप पुन्य जो किया
मिल रहा प्रतिकार है
धरती का ये अंत है
या नर-संघार है
पाप बस बढ़ रहा
बढ़ रहा अंधकार है
ये वक़्त, कैसा वक़्त है ?
बह रहा बस रक्त है
-